Tuesday, October 16, 2012

Katiki karam kamavane

कतिकि:- कब तक 

कतिकि करम कमावणे दोसु न काहू जोगु ॥
परमेसर ते भुलिआं विआपनि सभे रोग ॥
वेमुख होए राम ते लगनि जनम विजोग ॥
खिन महि कउड़े होइ गए जितड़े माइआ भोग ॥
विचु न कोई करि सकै किस थै रोवहि रोज ॥
कीता किछू न होवई लिखिआ धुरि संजोग ॥
वडभागी मेरा प्रभु मिलै तां उतरहि सभि बिओग ॥
नानक कउ प्रभ राखि लेहि मेरे साहिब बंदी मोच ॥
कतिक होवै साधसंगु बिनसहि सभे सोच ॥९॥
- मांझ बारहमाहा(म. ५ ), श्री आदि ग्रन्थ, पन्ना १३५

व्याख्या:- जीव जब तक यह मानता रहेगा कि मैं कुछ कर सकता हूँ (यही करम है ), तब तक उसे गर्भ-जून से छुटकारा नहीं मिल सकता | जीव को उपदेश है कि तू कब तक (कतिकि )  ऐसे करम कमाता रहेगा , तेरे इस जनम-मरण के आवा-गमन का दोषी कोई दूसरा नहीं बल्कि ये करम (मैं कुछ कर सकता हूँ )  ही हैं |


Tuesday, October 9, 2012

Piyoo Daaday Jayvihaa Potaa Parvaanu


पियू दादे जेविहा पोता परवाणु ॥ 

- रामकली की वार; ३ (भ. बलवंड सता ), श्री आदि ग्रन्थ; पन्ना ९६८ 


पियू दादे और पोते के बारे में जानकारी लेने के लिए हम गुरमत की इस पंक्ति को आधार बना कर चलेंगे 

पड़िऐ नाही भेदु बुझिऐ पावणा ॥ - पन्ना १४८

भाव, बिना समझे(विचारे) महज पढने मात्र से ही गुरबाणी में बताये गए सच को समझा नहीं जा सकता 
आओ गुरबाणी में से विचारें की मन, जो कि जोत सरूप है , इसके माता-पिता कौन हैं?

कुछ परमाण:-


तूं मेरा पिता तूंहै मेरा माता ॥-  पन्ना  १०३  

मेरा पिता माता हरि नामु है हरि बंधपु बीरा ॥ -पन्ना  १६३  
तूं गुरु पिता तूंहै गुरु माता तूं गुरु बंधपु मेरा सखा सखाइ ॥३॥ -पन्ना १६७ 
गुरदेव माता गुरदेव पिता गुरदेव सुआमी परमेसुरा ॥ -पन्ना २५० 
हरि नामु पिता हरि नामो माता हरि नामु सखाई मित्रु हमारा ॥ - पन्ना ५९२ 
 हरि आपे माता आपे पिता जिनि जीऊ उपाइ जगतु दिखाइआ ॥  - पन्ना ९२१ 
हरि जी माता हरि जी पिता हरि जीऊ प्रतिपालक ॥ - पन्ना ११०१


अतः मन के माता-पिता दोनों "चित्त , गुर , हरि, गुरदेव , सतिगुर , गोबिंद, प्रभ " इत्यादि हैं , जो कि पूरणब्रह्म का रूप हैं 
अब बूझो (जानो) कि दादा यां बाबा कौन है ?
यह परमेश्वेर , गुरु, सतिगुरु , यां प्रभू है जो कि पारब्रह्म का रूप है   

पीऊ दादे का खोलि डिठा खजाना ॥ - पन्ना  १८६

इसका भी अर्थ यही बनेगा कि गुरबाणी "पियू दादे का" खजाना है 

                          पीऊ :- चित्त, गुर , हरि , सतिगुर ,गुरदेव,गोबिंद, प्रभ
दादा :- परमेश्वेर , गुरु, सतिगुरु , यां प्रभू 
पोता :- मन , ध्यान , सुरत    

-  गुरजीत सिंघ आस्ट्रेलिया


Sunday, October 7, 2012

Sachkhoj Academy ka Udeshya

सच्चखोज अकैडमी का उदेश्य :-

आदि बाणी और दसम बाणी के टीकों (व्याख्याओं) मैं जानभूझ कर यां अनजानेपन में डाले गए यां गलती से डले हुए शंशों (शंकाओं) को दूर करके गुरमत को गुरबाणी (आदि बाणी तथा दसम बाणी ) में से खोज कर उसका प्रचार और परसार करना |

Saturday, October 6, 2012

Sikkhi saprdaay nahi hai


सच किसी सम्प्रदाय के घेरे में नहीं आता, सिक्खी सारी मानवता का धरम है | यह अलग बात है कि आज सिक्खों ने सिक्खी को एक सम्प्रदाय बना दिया पर मूल रूप से सिक्खी कोई सम्प्रदाय या कौम नहीं है |  

रागु आसा घरु २ महला ४ ॥
किस ही धड़ा कीआ मित्र सुत नालि भाई ॥
किस ही धड़ा कीआ कुड़म सके नालि जवाई ॥
किस ही धड़ा कीआ सिकदार चउधरी नालि आपणै सुआई ॥
हमारा धड़ा हरि रहिआ समाई ॥१॥
हम हरि सिउ धड़ा कीआ मेरी हरि टेक ॥
मै हरि बिनु पखु धड़ा अवरु न कोई हउ हरि गुण गावा असंख अनेक ॥१॥ रहाउ ॥
जिन्ह सिउ धड़े करहि से जाहि ॥
झूठु धड़े करि पछोताहि ॥
थिरु न रहहि मनि खोटु कमाहि ॥
हम हरि सिउ धड़ा कीआ जिस का कोई समरथु नाहि ॥२॥
एह सभि धड़े माइआ मोह पसारी ॥
माइआ कउ लूझहि गावारी ॥
जनमि मरहि जूऐ बाजी हारी ॥
हमरै हरि धड़ा जि हलतु पलतु सभु सवारी ॥३॥
कलिजुग महि धड़े पंच चोर झगड़ाए ॥
कामु क्रोधु लोभु मोहु अभिमानु वधाए ॥
जिस नो क्रिपा करे तिसु सतसंगि मिलाए ॥
हमरा हरि धड़ा जिनि एह धड़े सभि गवाए ॥४॥
मिथिआ दूजा भाउ धड़े बहि पावै ॥
पराइआ छिद्रु अटकलै आपणा अहंकारु वधावै ॥
जैसा बीजै तैसा खावै ॥
जन नानक का हरि धड़ा धरमु सभ स्रिसटि जिणि आवै ॥५॥२॥५४॥
- राग आसा(म. ५), पन्ना ३६६

Wednesday, October 3, 2012

Poojaa kaa Dhan

संखीया एक किस्म का जहर होता है और तथाकथिक धार्मिक स्थलों पर पूजा के चडावे के तौर पर दान पात्रों (गोलकों ) में डाली गयी बेशुमार दौलत भी आज संखीया जैसा असर दिखा रही है जिस वहज से सिक्खों में से सिक्खी (गुरमत की शबद विचार रूपी असल शिक्षा) ख़तम हो रही है |