Saturday, December 22, 2012

Siraad


गुरबाणी पितरों (बड़े-बड़ेरों) की तथाकथित आत्मिक शांति और मुक्ति और उनको मान सम्मान देने के लिए किये जाने वाले सिराध रूपी प्रपंच का खंडन करती है | मृतक पितरो को अर्पण किया गया खीर-पूरी का भोजन केवल कुत्तों(कूकर) और कव्वों (कऊआ) को ही नसीब होता है :-

रागु गउड़ी बैरागणि कबीर जी
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
जीवत पितर न मानै कोऊ मूएं सिराध कराही ॥
पितर भी बपुरे कहु किउ पावहि कऊआ कूकर खाही ॥१॥
मो कउ कुसलु बतावहु कोई ॥
कुसलु कुसलु करते जगु बिनसै कुसलु भी कैसे होई ॥१॥ रहाउ ॥
माटी के करि देवी देवा तिसु आगै जीउ देही ॥
ऐसे पितर तुमारे कहीअहि आपन कहिआ न लेही ॥२॥
सरजीउ काटहि निरजीउ पूजहि अंत काल कउ भारी ॥
राम नाम की गति नही जानी भै डूबे संसारी ॥३॥
देवी देवा पूजहि डोलहि पारब्रहमु नही जाना ॥
कहत कबीर अकुलु नही चेतिआ बिखिआ सिउ लपटाना ॥४॥१॥४५॥
गउड़ी (भ.कबीर ), श्री आदि ग्रन्थ, पन्ना ३३२

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